कविता
नींद में स्री
कई हज़ार वर्षों से
नींद में जाग रही है स्री
नींद में भर रही है पानी
नींद में बना रही है व्यंजन
नींद में बच्चों को
खिला रही है दाल चावल
पूरे परिवार के कपडे धोते हुए
झूठे बर्तन साफ़ करते हुए
थकती नहीं स्त्री
हजारों मील नींद में चलते हुए
जब पूरा परिवार
सो जाता है संतुष्ट हो कर
तब अँधेरे में
अकेली बिलकुल अकेली
नींद में जागती रहती है स्त्री
कई हजार वर्षों से
नींद में कर रही है प्रेम
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नींद में स्री
कई हज़ार वर्षों से
नींद में जाग रही है स्री
नींद में भर रही है पानी
नींद में बना रही है व्यंजन
नींद में बच्चों को
खिला रही है दाल चावल
पूरे परिवार के कपडे धोते हुए
झूठे बर्तन साफ़ करते हुए
थकती नहीं स्त्री
हजारों मील नींद में चलते हुए
जब पूरा परिवार
सो जाता है संतुष्ट हो कर
तब अँधेरे में
अकेली बिलकुल अकेली
नींद में जागती रहती है स्त्री
कई हजार वर्षों से
नींद में कर रही है प्रेम
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