कविता
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जली हुई देह
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वह स्त्री पवित्र अग्नि की लौ से
गुज़र कर आई उस घर में
उसकी देह से फूटती रोशनी
समा गई घर की दीवारों में
दरवाजों और खिड़कियों में
उसने घर की हर वस्तु कपडे, बिस्तर,बर्तन
यहाँ तक की झाड़ू को भी दी अपनी उज्ज्वलता
दाल,अचार, रोटियों को दी अपनी महक
उसकी नींद,प्यास,भूख और थकन
विलुप्त हो गई एक पुरुष की देह में
पवित्र अग्नि की लौ से गुज़र कर आईं
स्त्री को एक दिन लौट दिया अग्नि को
जिस स्त्री ने पहचान दी घर को
उस स्त्री की कोई पहचान नहीं थी
जली हुई देह थी एक स्त्री की
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जली हुई देह
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वह स्त्री पवित्र अग्नि की लौ से
गुज़र कर आई उस घर में
उसकी देह से फूटती रोशनी
समा गई घर की दीवारों में
दरवाजों और खिड़कियों में
उसने घर की हर वस्तु कपडे, बिस्तर,बर्तन
यहाँ तक की झाड़ू को भी दी अपनी उज्ज्वलता
दाल,अचार, रोटियों को दी अपनी महक
उसकी नींद,प्यास,भूख और थकन
विलुप्त हो गई एक पुरुष की देह में
पवित्र अग्नि की लौ से गुज़र कर आईं
स्त्री को एक दिन लौट दिया अग्नि को
जिस स्त्री ने पहचान दी घर को
उस स्त्री की कोई पहचान नहीं थी
जली हुई देह थी एक स्त्री की
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