कविता
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आकाश
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हर व्यक्ति के सिर पर
एक आकाश होता है
चाहे बहुत दूर होता है
आकाश है ये महसूस करने पर
सहारा बना रहता है
होते तो और भी कई सहारे हैं
किन्तु वे कभी भी
छोड़ कर जा सकते हैं
जैसे पहाड़ टूट कर गिर सकते हैं
बिजली कड़क कर गिर सकती है
बादल गरज कर बरस सकते हैं
आकाश सिर्फ मुहावरे में गिरता है
आकाश के सिर पर रहने से
भरोसा नहीं टूटता।
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( "परिकथा" मई - जून ' 2017 में प्रकाशित )
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